उत्तराखंड। पहाड़ का दर्द! फिसलन भरी सड़क पर गर्भवती महिला को कुर्सी पर बैठाकर लोग चले जा रहे थे। बारिश की वजह से फिसलन ने भी रास्ते को जैसै और लंबा बना दिया हो। चलने की इतनी दुश्वारियों के बीच लोग हम्मत बनाए थे। कई बार संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था और थोड़े समय के बाद सड़क पर ही प्रसव हो गया।
एक तरफ विकास बड़ी-बड़ी सड़कों का जिक्र होता है तो दूसरी तरफ पहाड़ का दर्द जस का तस बना हुआ सा दिखता है। पहाड़ की कई ग्राम सभाएं आज भी सड़क, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं से वंचित हैं। बता दें कि ग्राम सभा बल्यूटी के तोक मोरा में बुधवार को गर्भवती को प्रसव पीड़ा होने पर प्रसूता को पांच किमी कुर्सी पर बैठाकर लोग लाए लेकिन सड़क पर ही प्रसव हो गया।
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भुजियाघाट के करीब बसे तोक मोरा गांव की दीपा जीना को प्रसव पीड़ा हुई। गांव से नैनीताल हाईवे पांच किमी दूर है। सड़क न होने की वजह से दीपा के परिजन और ग्रामीण उसे कुर्सी पर बैठाकर सड़क की ओर लाने लगे। इस दौरान मूसलाधार बारिश हो रही थी।
ग्रामीणों का कहना है कि रास्ता फिसलन भरा होने की वजह से चलना दुश्वार हो रहा था। गर्भवती को ले जाना बहुत मुश्किल हो रहा था। कई बार संतुलन बनाना मुश्किल हो गया। रास्ते में उनके पैरों पर जोंक चिपक रहीं थीं। भारी बारिश में दीपा भी भीगती रही। किसी तरह तीन घंटे तक चलने के बाद भुजियाघाट से दस मीटर पहले प्रसव पीड़ा बढ़ गई और अपराह्न तीन बजे महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे दिया।
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स्थानीय लोगों का मिला साथ
जब स्थानीय लोगों को इस बात की जानकारी हुई कि महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे दिया है तो वे मदद के लिए दोड़ पड़े। हालांकि कुछ समय के बाद वहां 108 एंबुलेंस पहुंच गई और महिला तथा बच्चे को एंबुलेंस से तुरंत महिला अस्पताल ले जाया गया।
इस मामले पर नैनीताल के सीएमओ का कहना है कि उनकी आशा कार्यकत्री से बात हुई जिसने बताया कि आधा रास्ता पार करने के बाद एंबुलेंस को फोन किया गया था इसलिए देरी हुई। फिलहाल अस्पताल में जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
पहाड़ का दर्द! तीन बार सर्वे के बाद भी नहीं बनी सड़क
जबकि मोरा क्षेत्र की पंचायत सदस्य इस बारे में बताती हैं कि 10 किमी के दायरे में कोई अस्पताल नहीं है। गांव से नैनीताल रोड तक पांच किमी सड़क बनाए जाने को लेकर तीन बार सर्वे हो चुका है। मामला बड़े अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में है। इसके बाद भी आज तक लोग सड़क से वंचित हैं।
दुश्वारियों के चलते नहीं थम रहा पलायन!
पहाड़ों में इस क़दर की दुश्वारियों के बीच कई बार ऐसा होता है कि समय पर मरीज अस्पताल पहुंच ही नहीं पाते और रास्ते में ही मरीजों की जान चली जाती है। जाहिर सी बात है कि इस तरह की तमाम विषम परिस्थितियों के चलते ही शाायद पहाड़ों से पलायन नहीं था रहा।
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