स्वामी सानंद के निधन के बाद उत्तराखंड सरकार ने उन्हें प्रो जीडी अग्रवाल के तौर पर श्रद्धांजलि दी है। हैरानी की बात ये है कि तकरीबन 10 वर्ष पूर्व प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने सन्यास ले लिया था और वो स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के रूप में ही जाने जाते थे लेकिन सीएम की ओर से जारी शोक संदेश में उन्हें प्रोफेसर जीडी अग्रवाल कह कर ही संबोधित किया गया है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि कहीं सरकार जानबूझकर तो स्वामी सानंद को प्रोफेसर जीडी अग्रवाल कह कर नहीं संबोधित कर रही है?
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रो. जी.डी. अग्रवाल के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। अपने शोक सन्देश मे मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि गंगा के विभिन्न मुद्दों के लिए अनशनरत प्रो.जी.डी.अग्रवाल के निधन से उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। उनकी मुख्य मांग थी कि गंगा के लिए अलग से एक्ट बनाया जाए और राज्य में तमाम जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द किया जाए। इस कार्य के अध्ययन और उस पर योजना बनाने में थोड़ा समय लगता है। हमारी सरकार और केंद्र सरकार लगातार उनसे संपर्क में थी, बातचीत होती थी। केंद्रीय पेयजल मंत्री सुश्री उमा भारती ने उनसे मुलाकात की थी। उसके बाद जल संसाधन मंत्री श्री नितिन गड़करी ने भी फोन पर प्रोफेसर साहब से बातचीत की थी।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि राज्य सरकार की तरफ से भी इस मुद्दे पर पूरी संवेदनशीलता दिखाई गई थी। सरकार के प्रतिनिधि लगातार उनके संपर्क में थे। हरिद्वार के सांसद श्री रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक‘‘ भी उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे। हमारी कोशिश थी कि किसी तरह से उनकी जान बचायी जा सके। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी उन्होंने अनशन तोड़ने से इनकार कर दिया। जैसे ही उन्होंने 9 अक्टूबर को जल का त्याग किया, उन्हें फौरन ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था। एम्स के डाक्टरों ने भी उनकी जान बचाने का भरसक प्रयास किया।