कुछ दिनों पहले आपने अखबारों और टीवी चैनलों पर उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन के दावों से भरे विज्ञापन तो देखे ही होंगे। लाखों रुपए खर्च किए ही गए होंगे इन विज्ञापनों के लिए। अब सरकार ने विज्ञापन दे दिया तो समझिए कि आपदा का प्रबंधन हो ही गया। यदि थोड़ी बहुत कमी रह गई तो समझिए कि वो जनता की कमी क्योंकि जनता ने टार्च, रस्सी, रसद वगैरह का इंतजाम नहीं किया होगा लिहाजा सरकार न गलत थी और न होगी।
फिर देहरादून से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर रायवाला इलाके के गौहरमाफी इलाके में करीब ढाई सौ परिवार सौंग नदी की उफनाई धारा के बीच पिछले पांच दिनों से संघर्ष कर रहें हैं और उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग अपनी सहूलियत से प्रबंध कर रहा है। गौहरमाफी में रहने वाले ढाई सौ परिवारों को सौंग नदी ने अपनी धाराओं से घेर लिया। पांच दिनों से यही हाल है। NDRF और SDRF की टीमें पहुंची तो सही लेकिन अधूरी तैयारियों के साथ। करना ढाई सौ परिवारों का रेस्क्यू है और तैयारी मानों दो तीन लोगों को निकालने की है। यही वजह है कि पांच दिनों में लोगों को सुरक्षित नहीं निकाला जा सका है। बच्चे और बुजुर्ग, महिलाएं खौफजदा हैं, लोग पानी से भरे अपने घरों को छोड़कर गौहरमाफी के ही अलग सुरक्षित इलाके में जाने को विवश हैं।
हालात ये हैं कि अब लोगों का खाने पीने का सामान भी खत्म होने लगा है लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग को इसकी सुध ही नहीं है। मानों विभाग को पता ही नहीं हो कि रास्ते बंद होने से गौहरमाफी में खाने पीने का सामान नहीं पहुंच पा रहा होगा। हालात दिन पर दिन खराब हो रहें हैं और सरकार चुप है।
हैरानी देखिए कि छोटे छोटे कार्यक्रमों में पहुंचने वाले ऋषिकेश विधायक और विधानसभा अध्यक्ष चार दिनों बाद पहुंचे वो भी पहले बर्थडे पार्टी में गए और फिर बाढ़ में घिरे लोगों से मिलने गए, सीएम त्रिवेंद्र रावत को वक्त नहीं मिला कि थोड़ा वक्त निकालकर राहत कार्यों का जाएजा लेते।
ऐसे में गौहरमाफी के साथ मानों NDRF और SDRF भेजकर मजाक किया गया हो। फिर स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी भी अपनी ड्यूटी कर रहें हैं और मौका मुआयना कर लौट जा रहे हैं यहीं नहीं रेस्क्यू टीमें भी घड़ी देखकर लौट जा रहीं हैं। ऐसे में गौहरमाफी के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।