काशीपुर के कुंडा थाना इलाके के पतरामपुर की जमीन में सेना की 556 मिसाइलें पिछले 13 सालों से दबी हुईं हैं। ये मिसाइलें यहां स्क्रैप के तौर पर पहुंची थीं लेकिन एक हादसे के बाद इस स्क्रैप को जमीन में दफन करना पड़ गया। अब 13 सालों बाद इन मिसाइलों को निष्क्रिय करने के लिए सेना ने पहल की है। इसके लिए जमीन की तलाश भी कर ली गई है। वन विभाग की ओर से अपनी भूमि देने से मना करने के बाद फिर से यहां पहुंची सेना की टीम ने बुधवार को नई जगह चिह्नित कर ली है। सितंबर तक मिसाइलों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा। मिसाइल निस्तारण के लिए पुलिस विभाग को 20 लाख रुपये का बजट जारी हो चुका है।
आईसीडी तुगलकाबाद से 10 दिसंबर 2004 को 16 कंटेनर में स्क्रैप काशीपुर की एसजी स्टील फैक्ट्री में लाया गया था। स्क्रैप की इस खेप में 556 मिसाइलें भी शामिल थी। 30 दिसंबर को एक मिसाइल को काटने के दौरान मिसाइल फटने से फैक्ट्री के वेल्डर सतपाल की मौके पर ही मौत हो गई। सुरक्षा के लिहाज से अन्य मिसाइलों को पतरामपुर में जमीन में दफना दिया गया था। 11 माह पूर्व मिसाइलों को नष्ट करने के लिए पुलिस मुख्यालय से 20 लाख रुपये का बजट जारी हुआ और लखनऊ बाराबंकी से सेना की बम निरोधक दस्ते के सूबेदार प्यारा सिंह और लांसनायक राजपाल ने पतरामपुर पहुंचकर फीका नदी के किनारे स्थित वन विभाग की भूमि को मिसाइल निष्क्रिय करने के लिए चिह्नित किया। लेकिन इसके बाद वन विभाग ने भूमि लेने के लिए भारत सरकार से अनुमति लेने की बात कह कर रोड़ा डाल दिया। इस पर एसएसपी डॉ. सदानंद दाते ने नई भूमि का चयन करने के लिए डीएम कार्यालय को पत्र लिखा। इसके आधार पर बीते बुधवार को सेना की टीम ने पतरामपुर पहुंचकर नई जगह चिह्नित कर ली है। एसएसपी डॉ. सदानंद दाते ने बताया कि सितंबर में मिसाइलों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा।