इन दिनों उत्तराखंड का एक राज्सभा पिछले लगभग साढ़े चार सालों से कुर्सी पर बैठे पांच लोकसभा सांसदों और तकरीबन डेढ़ सालों से सरकार चला रहे मुख्यमंत्री के कामकाज पर भारी पड़ता हुआ दिख रहा है। ऐसे में सवाल उठने लगें हैं कि जब एक राज्यसभा सांसद इतने कम समय में इतना कुछ कर सकता है तो हमारे सांसद और सीएम क्यों नहीं कर पाए? करना नहीं चाहते या कर नहीं पा रहे।
दरअसल हाल ही में उत्तराखंड से राज्यसभा के लिए चुने गए अनिल बलूनी इन दिनों पूरे फार्म में नजर आ रहें हैं। अनिल बलूनी ने कुछ ही महीनों में कई बड़े काम कर चर्चाओं को रास्ता दे दिया। अनिल बलूनी ने हाल ही में राज्य के ग्रामीण इलाकों में आईसीयू जैसी सुविधाओं वाली स्वास्थय केंद्रों की स्थापना का काम शुरु कर दिया है। दरअसल राज्य के पर्वतीय इलाकों में दुर्घटनाओं में घायल लोगों को तत्काल बेहतर उपचार नहीं मिल पाता। स्वास्थय केंद्रों में सुविधाएं होती नहीं लिहाजा ऐसे में डाक्टर चाह कर भी घायलों को अटेंड नहीं कर पाते। उन्हें देहरादून के लिए रेफर किया जाता है ऐसे में गंभीर घायलों का हालत बिगड़ जाती है और कई मामलों में मौत भी हो जाती है। अनिल बलूनी ने पहाड़ के लोगों के इसी मुश्किल को समझकर घोषणा की है कि वो अपनी सांसद निधि से हर साल उत्तराखंड के पर्वतीय भागों में 2 से 3 इंटेंसिव केयर यूनिट(आइसीयू) के लिए धन उपलब्ध करायेंगे, जिससे कि दुर्गम इलाकों में आइसीयू होने से बीमार व्यक्तियों को हायर सेंटर भेजने से पहले सघन चिकित्सा जांच का लाभ मिल सकेगा।
वहीं अनिल बलूनी ने वो अपने कार्यकाल के दौरान वो काम कर दिखाया जो पिछले साढ़े चार साल में पांच लोकसभा सांसद भी नहीं कर पाए। अनिल बलूनी ने काठगोदाम से देहरादून के बीच नई ट्रेन की शुरुआत भी करा दी है। इससे पर्यटकों और राज्य के लोगों की गढ़वाल और कुमाऊं के बीच आवाजाही बढ़ेगी इसमें दो राय नहीं है। हैरानी है कि ये काम पांचों सांसद क्यों नहीं करा पाए। फिर सीएम त्रिवेंद्र को भी ये ख्याल क्यों नहीं आया?
फिर आपदा से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक उत्तराखंड को अभी तक NDRF की स्थायी बटालियन नहीं मिली थी। राज्य से लोकसभा के लिए चुने पांचों सांसदों ने ऐसा कोई प्रयास किया हो ऐसा ज्ञात नहीं है। त्रिवेंद्र सरकार की ओर से भी कभी ऐसा कोई प्रयास हुआ हो ऐसा कोई समाचार कभी सामने आया नहीं। लेकिन अनिल बलूनी ने न प्रयास किया बल्कि सफल भी रहे।
ऐसे में अब ये सवाल तो उठ ही रहा है कि उत्तराखंड के पांचों लोकसभा सांसदों और त्रिवेंद्र सरकार के कामकाज पर कहीं अनिल बलूनी का कामकाज भारी तो नहीं पड़ रहा है।