देहरादून। भूमाफिया से लड़ने का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार अब उन्हीं भूमाफिया के सामने घुटने टेकते नजर आ रही है। देहरादून शहर के ‘फेफड़े’ कहे जाने वाले चाय बागान की जमीन को खुर्दबुर्द कर उसका लैंड यूज बदलने की गुपचुप तैयारी चल रही है और सरकारी मशीनरी चुपचाप सब देख रही है। ऐसे में बड़ा सवाल सरकार की मंशा पर भी उठ रहा है। सवाल ये है कि कहीं ये सब सरकार के संरक्षण में तो नहीं चल रहा है?
देहरादून से शिमला को जाने वाली सड़क के दोनों ओर अंग्रेजों के जमाने से चाय के बागान लगे हुए हैं। ये चाय बागान बहुत बड़े भूभाग पर हैं। समय के साथ ये जमीन अब शहर के बीच में आ चुकी है और बेहद कीमती हो गई है। यही वजह है कि इस पर भूमाफिया की नजर पिछले कुछ समय से लगी हुई है। हरीश रावत सरकार में तो चाय बागान को खत्म करने की तैयारी कर ली गई थी। सरकार ने यहीं पर स्मार्ट सिटी बसाने का इरादा कर लिया था। हालांकि विरोध के बाद फैसला बदल दिया गया।
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अब त्रिवेंद्र सरकार में भी एक बार चाय बागान की जमीन पर कब्जे की तैयारी शुरू हो गई है। चाय के पौधों को काट दिया गया है और जमीन को समतल किया जा रहा है। नियमों के मुताबिक बागान से चाय के पौधे नहीं काटे जा सकते हैं और न ही यहां जमीन को समतल किया जाएगा। यही नहीं, अगर किसी भी सूरत में चाय बागान के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के लिए इस जमीन का उपयोग हुआ तो ये जमीन सरकार में निहित हो जाएगी।
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हालांकि भूमाफिया के हौसलों को देखकर लगता है कि उसे ने कानून का डर है और न ही कानून का पालन कराने वाली सरकार पर। यही वजह है कि देहरादून को रहने लायक बनाए रखने वाले इस चाय बागान की सीने को नंगा किया जा रहा है। चर्चाएं हैं कि ये सब सरकार में बैठे किसी बेहद ‘पॉवरफुल’ शख्स के इशारे पर हो रहा है। अब ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या भूमाफिया से लड़ने का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार चाय बागान को बचा पाएगी?
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