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उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। हालात ये हैं कि राज्य की कमाई का एक बड़ा हिस्सा कर्ज का ब्याज चुकाने में ही चला जा रहा है। कैग की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है।
उत्तराखंड के बजट सत्र के दौरान आई कंट्रोलर ऑडिट CAG की रिपोर्ट बताती है कि राज्य पर अब तक 73,751 करोड़ का कर्ज हो गया है। कैग ने पिछले पांच सालों के दौरान लिए गए कर्ज की रिपोर्ट को सदन में रखा है। इस रिपोर्ट के मुताबित अब राज्य को अपना कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। यही नहीं, पहले लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेने की नौबत आ गई है।
राज्य गठन के बीस साल से अधिक होने के बाद भी कमाई के स्रोत न बढ़ा पाने से राज्य की आर्थिकी पर बुरा असर पड़ा है। उम्मीद की जा रही थी कि राज्य का कर्ज कमोबेश कम होगा लेकिन पिछले कुछ सालों में कर्ज लगातार बढ़ता गया और उस अनुपात में कमाई कम होती गई।
कैग की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में बीजेपी सरकार बनने के बाद कर्ज में बेतहाशा इजाफा हुआ है। 2016-17 में जो कर्ज 44,583 करोड़ रुपए था वही कर्ज 2021 में 73,751 करोड़ तक पहुंच गया। यानी पांच सालों में सरकार ने 29,168 करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया।
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दिलचस्प ये है कि सरकार को अपना कर्ज चुकाने के लिए भी उधार लेना पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक जो कर्ज लिया जा रहा है उसका बड़ा हिस्सा पुराने कर्ज का ब्याज चुकाने में चला जा रहा है। बचा हुआ हिस्सा वेतन, भत्ते, पेंशन और कार्यों के लिए खर्च हो रहा है।
सरकार ने खर्च कम करने के लिए कर्मियों की आउटसोर्सिंग शुरु की है ताकि उसपर पेंशन इत्यादि का बोझ न पड़े। हालांकि ये उपाय भी कोई खास कारगर नहीं दिखता।
उत्तराखंड पर सबसे ज्यादा बाजारी ऋण है। रिजर्व बैंक के जरिए राज्य सरकार यह कर्ज उठाती है। इसकी कुल राशि 53,302 करोड़ है जबकि भारत सरकार की देनदारी 3813 करोड़ की है। राज्य सरकार कर्मचारियों के जीपीएफ, ईएफ, राष्ट्रीय बचत स्कीम आदि से भी 16,636 तक करोड़ की उधारी है।
कैग की रिपोर्ट के बाद सरकार के आर्थिक प्रबंधन पर भी सवाल उठने लाजिमी हैं। अर्थव्यवस्था अगर कर्ज के बोझ तले दबती जाएगी तो इसका असर विकास कार्यों पर पड़ेगा। राज्य सरकार अपने संसाधनों से बड़े प्रोजेक्ट नहीं बना पाएगी। उसे केंद्रीय मदद पर ही आश्रित रहना पड़ेगा। इसके साथ ही राज्य को कमाई के नए जरिए तलाश करने की जरूरत भी पड़ेगी।
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