तो क्या उत्तराखंड में 2013 में आई केदारनाथ आपदा के प्रभावितों की खोज के मामले में जांच एजेंसियां ने झूठ बोला था? या यूं कहा जाए कि केदारनाथ आपदा में प्रभावित हुए लोगों की तलाश को सही तरीके से सरकारों ने कराई ही नहीं।
दरअसल ये सवाल इसलिए उठ रहें हैं क्योंकि उत्तराखंड पुलिस की एक टीम को फिर एक बार केदारनाथ के आसपास नरकंकाल मिले हैं। इनका डीएनए सैंपल लेकर कंकालों का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। इसके बाद नरकंकालों की जांच करने गई टीम भी वापस लौट आई है। हालांकि उसे एक हफ्ते तक सर्च अभियान चलाना था लेकिन वो दो दिनों में ही वापस आ गई।
उत्तराखंड पुलिस की टीम ने दो दिनों तक केदारघाटी में सर्च अभियान चलाया। इस दौरान उसे लिंचोली, गौरीकुंड से लेकर रामबाड़ा तक शवों के कंकाल मिले हैं। कुछ कंकाल पुलिस चौकी के पास से चार नरकंकाल बरामद हुए हैं।
त्रियुगीनारायण रूट पर फिर एक बार बड़ी संख्या में नरकंकाल मिले हैं। इस बार इस रूट पर 21 नरकंकाल मिले हैं। इससे पता चलता है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस रूट पर जान बचाने के लिए भागे थे लेकिन समय से रेस्कयू न हो पाने और खाने – पीने के सामान के अभाव में वो तड़प तड़प कर मर गए।
आपको बता दें कि दो साल पहले भी इस रूट पर सर्च अभियान चलाया गया था जिसमें बड़ी संख्या में नरकंकाल मिले थे।
बार बार नरकंकालों के मिलने से ये साफ है कि आपदा के बाद राहत और बचाव कार्यों में सरकार गंभीर नहीं रही। इसके साथ ही सर्च अभियान को लेकर भी गंभीरता नहीं बरती गई।