हरिद्वार। रूस और यूक्रेन समेत सीआइएस दवाओं के सबसे बड़े खरीदार हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि युद्ध के चलते फार्मा इकाइयों का कितना बड़ा कारोबार प्रभावित हो रहा है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध से फार्मा सेक्टर को करारा झटका लगा है। कच्चा माल 15 फीसदी महंगा होने के साथ कच्चे माल की सप्लाई भी बाधित हो रही है। अधिकांश कंपनियां दवाओं के रसायन और पैकेजिंग के कच्चे माल के लिए रूस-यूक्रेन समेत सीआइएसपर निर्भर हैं।
फार्मा कंपनी संचालकों का कहना है कि पहले कोरोना काल में फार्मा को मिलने वाला कच्चा माल महंगा कर दिया गया। कोरोना की दूसरी व तीसरी लहर समाप्त होने के बाद भी कच्चे माल के दाम कम नहीं हुए। अब अगर रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबा चला तो तमाम दवा कंपनियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।कच्चे माल के अलावा पैकेजिंग पर भी इसका विपरीत असर देखने को मिल रहा है। फार्मा संचालकों का कहना है कि तीन माह पहले पैकेजिंग में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
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फार्मा कंपनी संचालकों का कहना है कि यदि हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो फार्मा सेक्टर को बड़ा झटका लगेगा। जिससे उबरने में लंबा समय भी लग सकता है। प्रिन्टेड फॉइल 500 किलोग्राम से बढ़कर 600 रुपये किलोग्राम पहुंच गया है। कच्चा माल सेप्टिक जोल, पीवीसी 10 फीसदी महंगा हो गया है। इसी तरह अन्य कच्चे सामान पर भी युद्ध का असर पड़ा और वह सब महंगे दरों में मिल रहे हैं।
पैरासिटामोल का कच्चा माल हुआ महंगा
पैरासिटामोल दवा बनाने में प्रयोग में आने वाले कच्चे माल का दाम सप्ताह भर में 50 रुपये किलोग्राम बढ़ गया है। इससे पहले कोरोनाकाल में भी पैरासिटामोल दवा में काम आने वाले कच्चे माल का दाम काफी बढ़ा दिया गया था। फार्मा इकाइयां रूस और यूक्रेन से बड़े पैमाने पर दवाओं के कच्चे माल और पैकेजिंग के रूप में विभिन्न रसायन और एल्युमिनियम फॉइल का आयात करती हैं। मौजूदा हालात के चलते कच्चा माल जगह-जगह फंस गया है।
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